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बेंगलुरु में यूपीआई पर पाबंदी: दुकानदारों का कैश की ओर रुख, क्या है इसके पीछे की वजह

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Last updated: July 17, 2025 2:47 pm
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यूपीआई: भारत में डिजिटल क्रांति की शुरुआत

11 अप्रैल 2016 को भारत में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) ने एक नई डिजिटल क्रांति की शुरुआत की थी। पहले जहां लोग नकद भुगतान पर निर्भर थे, वहीं अब करोड़ों लोग यूपीआई के माध्यम से लेनदेन कर रहे हैं। मई और जून 2025 के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन लगभग 64 से 65 करोड़ यूपीआई ट्रांजैक्शंस हो रहे हैं। इस तेजी ने यूपीआई को वैश्विक दिग्गज वीजा को भी पीछे छोड़ने में मदद की है। लेकिन भारत के आईटी हब कहे जाने वाले बेंगलुरु में स्थिति थोड़ी अलग है। यहां कई दुकानदारों ने यूपीआई से भुगतान स्वीकार करना बंद कर दिया है और अपनी दुकानों के बाहर “यूपीआई नहीं, सिर्फ कैश” के बोर्ड लगा दिए हैं। आखिर इस फैसले के पीछे का कारण क्या है? और इसका जी, पेटीएम, फोनपे जैसे प्लेटफॉर्म्स पर क्या असर पड़ सकता है? आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।

बेंगलुरु में यूपीआई से दूरी क्यों?

इकोनॉमिक टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बेंगलुरु के कई दुकानदार अब यूपीआई की जगह नकद भुगतान को प्राथमिकता दे रहे हैं। कुछ दुकानदारों ने यूपीआई का उपयोग कम कर दिया है, जबकि कुछ ने इसे पूरी तरह बंद कर दिया है। एक दुकानदार ने बताया कि वह प्रतिदिन लगभग ₹3000 का कारोबार करता है, जिसमें उसका मुनाफा बहुत कम होता है। ऐसे में यूपीआई से भुगतान स्वीकार करने से उसे नुकसान हो रहा है। लेकिन सवाल यह है कि दुकानदारों का यह रुख अचानक क्यों बदल गया? इसके जवाब के लिए हमें कुछ पुरानी घटनाओं पर नजर डालनी होगी।

जीएसटी नोटिस: दुकानदारों के डर का कारण

पिछले कुछ समय से कर्नाटक में छोटे व्यापारियों को जीएसटी विभाग की ओर से शो-कॉज नोटिस भेजे जा रहे हैं। हाल ही में लगभग 14,000 छोटे व्यापारियों को ऐसे नोटिस मिले हैं। इन व्यापारियों के यूपीआई ट्रांजैक्शंस, जैसे फोनपे, गूगल पे, और पेटीएम के जरिए, सालाना ₹40 लाख से अधिक के टर्नओवर को दर्शाते हैं। लेकिन इनमें से कई ने न तो जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराया है और न ही टैक्स रिटर्न दाखिल किया है। सरकार ने इन व्यापारियों से पूछा है कि उन्होंने जीएसटी रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं कराया और क्या वे टैक्स चोरी कर रहे हैं। नोटिस में सात दिनों के भीतर जवाब देने को कहा गया है, अन्यथा टैक्स, जुर्माना, या जांच शुरू हो सकती है।

यूपीआई डेटा विश्लेषण: टैक्स चोरी पर नकेल

कर्नाटक के कमर्शियल टैक्स डिपार्टमेंट ने यूपीआई डेटा का विश्लेषण शुरू किया है, जिसके जरिए वे आसानी से यह पता लगा सकते हैं कि किसी दुकान पर कितना डिजिटल लेनदेन हुआ है। चूंकि यूपीआई ट्रांजैक्शंस का रिकॉर्ड पूरी तरह डिजिटल होता है, इसलिए टैक्स चोरी करने वालों को पकड़ना आसान हो गया है। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि ये नोटिस केवल जानकारी मांगने के लिए हैं और अभी कोई अंतिम दंड तय नहीं किया गया है। फिर भी, छोटे दुकानदारों में इस नोटिस को लेकर डर का माहौल है, जिसके चलते वे यूपीआई की जगह नकद भुगतान को प्राथमिकता दे रहे हैं।

जीएसटी नियम: क्या कहता है कानून?

भारत में जीएसटी एक्ट 2017 के सेक्शन 22 के अनुसार, अगर किसी दुकानदार का सालाना टर्नओवर ₹40 लाख से अधिक है, तो उसे जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। वहीं, सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए यह सीमा ₹20 लाख है। छोटे व्यापारियों के लिए कम टैक्स वाली कंपोजिशन स्कीम भी उपलब्ध है। अगर कोई व्यापारी इन सीमाओं को पार करता है और जीएसटी रजिस्ट्रेशन नहीं कराता, तो यह कानून का उल्लंघन माना जाता है। ऐसे मामनों में जुर्माना, ब्याज, या डिपार्टमेंटल जांच का सामना करना पड़ सकता है।

यूपीआई की लोकप्रियता और चुनौतियां

पिछले कुछ वर्षों में भारत में यूपीआई का उपयोग तेजी से बढ़ा है। यह ग्राहकों और दुकानदारों दोनों के लिए सुविधाजनक रहा है। लेकिन बेंगलुरु की यह स्थिति यूपीआई के भविष्य पर सवाल उठा रही है। दुकानदारों को डर है कि यूपीआई के जरिए उनकी आय का पूरा रिकॉर्ड सरकार के पास पहुंच रहा है, जिससे टैक्स से संबंधित कार्रवाई हो सकती है। मई-जून 2025 के आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल यूपीआई ट्रांजैक्शंस में कर्नाटक का हिस्सा 7.73% है, जो महाराष्ट्र (13.19%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा है। अगर बेंगलुरु में यूपीआई का उपयोग कम होता है, तो इसका असर फोनपे, गूगल पे, और पेटीएम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी पड़ सकता है।

सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग सरकार के इस कदम का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जो व्यापारी ₹50 लाख से अधिक के डिजिटल लेनदेन कर रहे हैं, वे छोटे दुकानदार नहीं हो सकते। उनका मानना है कि सरकार को टैक्स चोरी पर सख्ती करनी चाहिए। वहीं, कुछ लोग इस बदलाव से परेशान हैं, क्योंकि उन्हें फिर से नकद भुगतान के लिए एटीएम से पैसे निकालने पड़ रहे हैं, जो यूपीआई जितना सुविधाजनक नहीं है।

विशेषज्ञों की राय और सरकार की चुनौतियां

कर्नाटक जीएसटी के पूर्व अतिरिक्त आयुक्त एचडी अरुण कुमार ने इस मामले पर सवाल उठाते हुए कहा कि जीएसटी अधिकारी मनमाने ढंग से किसी भी राशि को टर्नओवर मानकर टैक्स की मांग नहीं कर सकते। उनका कहना है कि यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला नहीं है, जहां केवल शक के आधार पर कार्रवाई की जाए। बीजेपी विधायक एस सुरेश कुमार ने भी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से हस्तक्षेप की मांग की है। एक पूर्व जीएसटी फील्ड ऑफिसर ने बताया कि कई बार यूपीआई के जरिए आने वाला पैसा पूरी तरह बिजनेस से संबंधित नहीं होता। इसमें परिवार वालों से मिला पैसा, बिजनेस लोन, या अन्य ट्रांसफर भी शामिल हो सकते हैं।

सरकार के सामने दोहरी चुनौती

कर्नाटक सरकार के सामने दोहरी चुनौती है। एक ओर, उसे 2025-26 के लिए ₹1.20 लाख करोड़ के टैक्स लक्ष्य को पूरा करना है, ताकि कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे के लिए धन जुटाया जा सके। दूसरी ओर, उसे अपने वोट बैंक को भी ध्यान में रखना है। अगर सख्त टैक्स कार्रवाई से छोटे व्यापारी प्रभावित होते हैं, तो यह सरकार की लोकप्रियता को नुकसान पहुंचा सकता है।

क्या है भविष्य?

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक सरकार इस स्थिति को कैसे संभालती है। क्या बेंगलुरु में “यूपीआई नहीं, सिर्फ कैश” का यह ट्रेंड केवल स्थानीय स्तर पर सीमित रहेगा, या यह देश के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है? यूपीआई ने भारत में डिजिटल भुगतान को आसान बनाया है, लेकिन टैक्स नियमों और नोटिसों के डर से दुकानदारों का इस प्रणाली से दूरी बनाना चिंता का विषय है।

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