हरियाणा का रोहनात गांव, एक ऐसा नाम जो इतिहास के पन्नों में गर्व और दर्द दोनों को समेटे हुए है। यह गांव आज भी सरकार से नाराज है और उसकी वजह 1857 की क्रांति से जुड़ा एक दर्दनाक इतिहास है। आजादी के 78 साल बाद भी इस गांव में 15 अगस्त या 26 जनवरी को तिरंगा नहीं फहराया जाता। लेकिन 2018 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस गांव में तिरंगा फहराया, तो एक नई उम्मीद जगी। आखिर क्यों है यह गांव इतना नाराज? और क्या है इसकी कहानी? आइए जानते हैं।
1857 की क्रांति और रोहनात का बलिदान
रोहनात गांव ने 1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस गांव के हर परिवार, हर शख्स ने आजादी की लड़ाई में अपनी जान की बाजी लगा दी। गांववाले क्रांतिकारियों को खाना, पानी और हथियार मुहैया कराते थे। लेकिन इस साहस की कीमत उन्हें भारी चुकानी पड़ी। अंग्रेजों ने बदला लेने के लिए रोहनात पर कहर बरपाया। कई लोगों को फांसी पर लटका दिया गया, तो कई को सड़क पर रोड रोलर से कुचल दिया गया। यह बर्बरता उस समय कई जगहों पर आम थी, लेकिन रोहनात की कहानी कुछ अलग थी।
जमीनों की नीलामी: अंग्रेजों का बदला
अंग्रेजों ने रोहनात गांव को सबक सिखाने के लिए उनकी सबसे बड़ी ताकत—उनकी जमीन—छीन ली। गांव की सारी कृषि योग्य जमीन नीलाम कर दी गई और आसपास के शहरों के लोगों में बांट दी गई। यह न सिर्फ आर्थिक नुकसान था, बल्कि गांववालों की पहचान और सम्मान पर भी चोट थी। इस घटना ने रोहनात के लोगों के दिलों में गहरा जख्म छोड़ा, जो आज भी पूरी तरह भरा नहीं है।
तिरंगे का विरोध: गुस्से की वजह
रोहनात गांव के लोग आजादी के बाद भी अपनी जमीन वापस पाने की उम्मीद लिए बैठे थे। लेकिन 78 साल बीतने के बाद भी उनकी जमीन उनके नाम नहीं हो पाई। इस नाइंसाफी के खिलाफ गांववालों ने फैसला किया कि जब तक उन्हें उनका हक और सम्मान नहीं मिलता, वे न 15 अगस्त को तिरंगा फहराएंगे और न ही 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाएंगे। यह गुस्सा और दर्द पीढ़ियों तक चला आया।
2018 में बदली तस्वीर
साल 2018 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर रोहनात पहुंचे और उन्होंने गांव में तिरंगा फहराया। उन्होंने गांववालों से पूछा, “इतने साल बीत गए, अब भी किस बात की नाराजगी है?” जवाब में गांववालों ने अपनी पीड़ा बयां की—1857 की क्रांति में उनके बलिदान, अंग्रेजों की बर्बरता और जमीनों की नीलामी का दर्द। खट्टर ने ग्रामीणों को उनकी जमीन वापस दिलाने और उनके पूर्वजों को सम्मान देने का वादा किया। इसके बाद से गांव में तिरंगे को फहराने की शुरुआत हुई, लेकिन कई लोग अब भी पूर्ण न्याय की प्रतीक्षा में हैं।
रोहनात का गौरवशाली इतिहास
रोहनात की यह कहानी सिर्फ दर्द की नहीं, बल्कि साहस और बलिदान की भी है। इस गांव ने अंग्रेजों की हुकूमत को चुनौती दी और आजादी की लड़ाई में अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। आज भी गांव का वह बरगद का पेड़ और कुआं उस दौर की गवाही देता है, जहां लोगों ने अपनी जान दी थी। यह गांव हर भारतीय के लिए प्रेरणा है कि कैसे एक छोटा सा समुदाय भी बड़े बदलाव की नींव रख सकता है।
