भारतीय रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने अमेरिकी कंपनी GE एयरोस्पेस के साथ ऐतिहासिक समझौता किया है, जिसके तहत अब Tejas Mark 2 लड़ाकू विमानों के लिए F414-INS6 इंजन भारत में ही बनाए जाएंगे। यह डील भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है – यह न सिर्फ फाइटर जेट की कमी को दूर करेगी, बल्कि भारत की एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी को भी नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी।
क्या है इस डील का महत्व
- 80% तक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर: अमेरिका भारत को इंजन निर्माण की अत्याधुनिक तकनीक हस्तांतरित करेगा
- ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा: बेंगलुरु स्थित HAL इंजन डिवीजन में बनेंगे इंजन
- 99 इंजनों का निर्माण: पहले चरण में 99 F414 इंजनों का निर्माण किया जाएगा
- 2026 तक Tejas Mark 2 की डिलीवरी: समयसीमा का पालन करने में मदद मिलेगी

भारत में बनेगा Tejas Mark 2 का इंजन
Tejas Mark 2 की खासियत
- 4.5 जनरेशन फाइटर जेट: राफेल के बराबर क्षमता
- 17,500 किलो वजन: मार्क 1A से अधिक शक्तिशाली
- 1.8 मैक स्पीड: ध्वनि से 1.8 गुना तेज
- 75% स्वदेशीकरण: भारतीय तकनीक का बेहतर उपयोग
भारतीय वायुसेना के लिए क्यों जरूरी
भारतीय वायुसेना को फिलहाल 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है, लेकिन मौजूदा समय में केवल 31 स्क्वाड्रन ही सक्रिय हैं। MiG-21 के चरणबद्ध तरीके से सेवामुक्त होने और कुछ दुर्घटनाओं के कारण यह कमी और भी गंभीर हो गई है। Tejas Mark 2 के समय पर विकास और उत्पादन से इस कमी को दूर करने में मदद मिलेगी।
चुनौतियां और आगे की राह
हालांकि यह डील एक बड़ी सफलता है, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं:
- कोर टेक्नोलॉजी की कमी: एडवांस कोटिंग और सिंगल क्रिस्टल टरबाइन ब्लेड्स जैसी महत्वपूर्ण तकनीकें अभी भी अमेरिका से आयात की जाएंगी
- समयसीमा का पालन: HAL को 2026 तक Tejas Mark 2 को विकसित करने और डिलीवर करने की चुनौती
- भविष्य की तैयारी: 5वीं और 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के विकास पर ध्यान देना
इस डील का दीर्घकालिक लाभ यह होगा कि भारत न केवल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा कर पाएगा, बल्कि भविष्य में अन्य देशों को भी रक्षा उपकरण निर्यात करने में सक्षम होगा। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
