
पश्चिम बंगाल: ममता सरकार का बड़ा फैसला, ओबीसी सूची में 76 नई जातियां शामिल
कोलकाता, 4 जून 2025: पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। राज्य मंत्रिमंडल ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग (WBCBC) की सिफारिशों को मंजूरी देते हुए 76 नई जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची में शामिल करने का निर्णय लिया है। इस फैसले के बाद राज्य में ओबीसी सूची में शामिल जातियों की कुल संख्या 64 से बढ़कर 140 हो गई है। यह कदम सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।
सर्वेक्षण के आधार पर लिया गया निर्णय
ममता बनर्जी की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया। इस फैसले की पृष्ठभूमि में राज्य सरकार द्वारा हाल ही में कराया गया एक सामाजिक-शैक्षिक सर्वेक्षण है, जिसमें कई जातियों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति का गहन अध्ययन किया गया। पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग ने इस सर्वेक्षण के आधार पर 76 नई जातियों को ओबीसी सूची में जोड़ने की सिफारिश की थी। आयोग ने इन जातियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा पाया, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया।
इस सर्वेक्षण को लेकर ममता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी प्रतिबद्धता जताई थी। मार्च 2025 में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह तीन महीने के भीतर नया ओबीसी सर्वेक्षण पूरा कर लेगी। यह सर्वेक्षण जून 2025 तक पूरा हुआ, और अब इसकी रिपोर्ट 9 जून से शुरू होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में पेश की जाएगी। इस रिपोर्ट में 140 जातियों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की बात कही गई है, जिन्हें राज्य में 17% ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलेगा।
सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण का लक्ष्य
इस फैसले का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाना है। नई जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने से इन समुदायों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का लाभ मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम उन वर्गों को सशक्त करेगा, जो लंबे समय से सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहे हैं।
हालांकि, यह पहल विवादों से अछूती नहीं है। पिछले साल मई 2024 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2010 के बाद जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द कर दिया था, जिसमें 77 में से 75 जातियां मुस्लिम समुदाय से थीं। कोर्ट ने कहा था कि इन जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी और यह धर्म आधारित लगती है। ममता सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, और मामला अभी विचाराधीन है। नई सूची में भी कुछ ऐसी जातियां शामिल हो सकती हैं, जिन्हें पहले रद्द किया गया था, जिसके चलते इस फैसले पर सवाल उठ सकते हैं।
रिजर्वेशन और जातिगत जनगणना की बहस
इस फैसले ने एक बार फिर रिजर्वेशन और जातिगत जनगणना की बहस को हवा दे दी है। समर्थकों का कहना है कि रिजर्वेशन समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक प्रभावी तरीका है। जातिगत जनगणना के जरिए यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि रिजर्वेशन का लाभ उन वर्गों को मिले, जिन्हें इसकी वास्तविक जरूरत है। ममता सरकार ने भी इस सर्वेक्षण के जरिए उन जातियों की पहचान करने की कोशिश की है, जो वाकई पिछड़ी हुई हैं।
हाल के दिनों में कई राज्यों ने स्थानीय स्तर पर रिजर्वेशन को लेकर बड़े फैसले लिए हैं। उदाहरण के लिए, लद्दाख में सरकारी नौकरियों में 85% रिजर्वेशन स्थानीय लोगों के लिए लागू किया गया है, ताकि वहां के निवासियों को प्राथमिकता मिले। इसी तरह, कर्नाटक में भी कक्षा-4 की नौकरियों में 19% रिजर्वेशन स्थानीय लोगों के लिए तय किया गया था। हालांकि, इन फैसलों पर संवैधानिक भावना के उल्लंघन का सवाल भी उठा है, क्योंकि रिजर्वेशन का आधार क्षेत्रीयता को लेकर विवादित माना जाता है।
राजनीतिक रणनीति या सामाजिक न्याय?
ममता सरकार के इस फैसले को 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ी राजनीतिक रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल में ओबीसी आबादी लगभग 39% है, और यह समुदाय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाता है। नई जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने से ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) को इन समुदायों का समर्थन मिलने की उम्मीद है। विशेष रूप से मुस्लिम और दलित समुदायों को साधने की कोशिश के तौर पर इस फैसले को देखा जा रहा है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी करीब 27-30% है और यह टीएमसी का पारंपरिक वोट बैंक रहा है।
हालांकि, विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस फैसले की आलोचना की है। बीजेपी का आरोप है कि ममता सरकार वोट बैंक की राजनीति के लिए ओबीसी वर्गीकरण का दुरुपयोग कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले कहा था कि ममता बनर्जी ने बिना किसी सर्वेक्षण के 118 मुस्लिम जातियों को ओबीसी आरक्षण दिया, जिसे हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया। बीजेपी ने इसे तुष्टीकरण की राजनीति करार दिया है, जबकि टीएमसी ने कोर्ट के फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया।
ममता सरकार का यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम हो सकता है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कितनी पारदर्शिता के साथ लागू होता है। ओबीसी सूची में नई जातियों को शामिल करना उन समुदायों के लिए एक बड़ा अवसर है, जो लंबे समय से हाशिए पर रहे हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में कानूनी और संवैधानिक मानकों का पालन करना भी जरूरी है, ताकि भविष्य में इसे चुनौती न दी जा सके।
आने वाले विधानसभा सत्र में जब ओबीसी सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश होगी, तब यह साफ होगा कि नई सूची में किन-किन जातियों को शामिल किया गया है। साथ ही, यह भी देखना होगा कि क्या यह फैसला वाकई सामाजिक समानता की दिशा में एक कदम साबित होता है, या फिर यह सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित रह जाता है।