भारत की न्यायिक प्रणाली में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिसमें से 87% निचली अदालतों, 12.4% उच्च न्यायालयों और 0.2% सर्वोच्च न्यायालय में हैं। न्याय में देरी (Justice Delayed is Justice Denied) की स्थिति ने नागरिकों के विश्वास को प्रभावित किया है। इसके पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें सरकारी मुकदमेबाजी (Government Litigation), न्यायाधीशों के रिक्त पद और अप्रभावी केस प्रबंधन प्रणाली प्रमुख हैं।
न्यायिक विलंब के प्रमुख कारण
1. सरकारी मुकदमेबाजी (Government Litigation)
- 50% से अधिक लंबित मामलों में सरकार एक पक्षकार है।
- पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने कहा था कि “सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज (Biggest Litigant) है।”
- सरकारी विभाग अक्सर तुच्छ मामलों को अदालतों तक ले जाते हैं, जिससे केसों का बोझ बढ़ता है।
2. न्यायाधीशों की कमी (Judicial Vacancies)
- उच्च न्यायालयों में 31% और जिला अदालतों में 21% पद रिक्त हैं।
- जज-जनसंख्या अनुपात (Judge-to-Population Ratio) बेहद कम है:
- भारत: 20 जज प्रति 10 लाख जनता
- अमेरिका: 150 जज प्रति 10 लाख
- यूरोप: 210 जज प्रति 10 लाख
3. अव्यवस्थित जांच प्रणाली (Inefficient Investigation)
- 76% कैदी अभी भी विचाराधीन (Under Trial) हैं, जिनमें से कई बिना सबूत के वर्षों तक जेल में रहते हैं।
4. डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
- अभी भी अधिकांश न्यायिक प्रक्रियाएँ कागजी कार्यवाही पर निर्भर हैं, जिससे देरी होती है।
न्यायिक विलंब कम करने के उपाय
1. सरकारी मुकदमेबाजी में सुधार (Standard Operating Procedure – SOP)
- नवंबर 2024 में, कानून मंत्रालय ने SOP जारी किया, जिसमें सरकारी विभागों को मामलों को अदालत में ले जाने से पहले उनकी गुणवत्ता जांचने का निर्देश दिया गया।
- ADR (Alternative Dispute Resolution) को बढ़ावा देना, जैसे मध्यस्थता (Mediation), लोक अदालतें और आर्बिट्रेशन।
2. न्यायाधीशों की नियुक्ति में तेजी
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service – AIJS) का गठन करके निचली अदालतों में योग्य जजों की भर्ती की जा सकती है।
3. फास्ट ट्रैक कोर्ट्स का विस्तार
- POCSO मामलों, सांसदों/विधायकों के केस और वाणिज्यिक विवादों के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएँ।
- 14वें वित्त आयोग और 245वें विधि आयोग ने भी फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की सिफारिश की है।
4. ई-कोर्ट और डिजिटलीकरण
- ई-फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई और AI-आधारित केस ट्रैकिंग को बढ़ावा देना।
- सुगम पोर्टल और नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) के माध्यम से पारदर्शिता लाना।
5. विवाद से विश्वास योजना (Vivad se Vishwas Scheme)
- कर विवादों को अदालत से पहले ही सुलझाने के लिए इस योजना को लागू किया गया।
न्यायिक विलंब न केवल आम नागरिकों के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी हानिकारक है (जीडीपी को 1.5-2% नुकसान)। सरकार द्वारा SOP, ADR, फास्ट ट्रैक कोर्ट और डिजिटल सुधार जैसे उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन इन्हें अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। न्यायिक सुधारों के बिना “सबके लिए न्याय” का संवैधानिक लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता।
