लद्दाख के लिए नई राह: सरकार के नए नियम और बाकी चुनौतियां
लद्दाख, जो अपनी अनूठी संस्कृति और भौगोलिक स्थिति के लिए जाना जाता है, एक बार फिर चर्चा में है। केंद्र सरकार ने हाल ही में लद्दाख के लिए पांच नए नियमों को अधिसूचित किया है, जो स्थानीय लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को संबोधित करते हैं। ये मांगें 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से और तेज हो गई थीं, जब लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। इस दौरान, पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें सिक्स्थ शेड्यूल के तहत स्वायत्तता, नौकरियों और जमीन के संरक्षण की मांग की गई थी। आइए, इन नए नियमों और उनकी अहमियत पर एक नजर डालते हैं।
नए नियम: नौकरियों और संस्कृति को प्राथमिकता
केंद्र सरकार ने 2 और 3 जून, 2025 को पांच नए नियम अधिसूचित किए, जो लद्दाख के लोगों को नौकरियों, जमीन और सांस्कृतिक संरक्षण में प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। पहला नियम, लद्दाख सिविल सर्विस डिसेंट्रलाइजेशन एंड रिक्रूटमेंट रेगुलेशन 2025, के तहत अब लद्दाख में सरकारी नौकरियों के लिए डोमिसाइल की शर्त अनिवार्य होगी। डोमिसाइल के तहत वे लोग पात्र होंगे, जो पिछले 15 साल से लद्दाख में रह रहे हों, या जिन्होंने 7 साल तक यहां पढ़ाई की हो, या जिन्होंने 10वीं और 12वीं कक्षा लद्दाख से पास की हो। इसके अलावा, केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चे (जो 10 साल से यहां रह रहे हों) और लद्दाख के डोमिसाइल से शादी करने वाले भी इस नियम के तहत पात्र होंगे। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि लद्दाख की सरकारी नौकरियां स्थानीय लोगों को ही मिलें।
दूसरा नियम, लद्दाख सिविल सर्विस डोमिसाइल सर्टिफिकेट रूल्स, डोमिसाइल सर्टिफिकेट प्राप्त करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। यह सर्टिफिकेट तहसीलदार जारी करेगा, और डिप्टी कमिश्नर अपील प्राधिकरण होगा। आवेदन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से जमा किए जा सकते हैं। तीसरा नियम, यूनियन टेरिटरी ऑफ लद्दाख रिजर्वेशन रेगुलेशन 2025, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए रिजर्वेशन को 50% से बढ़ाकर 85% करता है। यह रिजर्वेशन पेशेवर संस्थानों जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में भी लागू होगा, जो लद्दाख की जनजातीय आबादी को लाभ पहुंचाएगा।
चौथा नियम लद्दाख की आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देता है। अब अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुर्गी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई है। साथ ही, शीना, ब्रोकशात, बाल्टी और लद्दाखी जैसी स्थानीय बोलियों को बढ़ावा देने की बात कही गई है, ताकि लद्दाख की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित किया जा सके। अंतिम नियम, लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (एलएएचडीसी) 2025, लेह और कारगिल में ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करता है, जो लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
क्यों अहम हैं ये नियम?
ये नियम लद्दाख के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को संबोधित करने की दिशा में एक व्यापक प्रयास हैं। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, लेकिन उसे विधायिका नहीं दी गई। इससे स्थानीय लोगों में अपनी पहचान, नौकरियों और जमीन को लेकर चिंता बढ़ गई थी। सोनम वांगचुक और लेह एपेक्स बॉडी व कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस जैसे संगठनों ने सिक्स्थ शेड्यूल की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए थे। सिक्स्थ शेड्यूल के तहत स्वायत्त जिला परिषदें बनाई जाती हैं, जो जमीन, वन, शिक्षा और रीति-रिवाजों पर स्थानीय कानून बनाने की शक्ति रखती हैं।
हालांकि, सरकार ने सिक्स्थ शेड्यूल देने से इनकार कर दिया है, लेकिन इन नए नियमों के जरिए कई मांगों को पूरा करने की कोशिश की गई है। डोमिसाइल आधारित नौकरी प्रणाली और रिजर्वेशन में बढ़ोतरी से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। भाषाई मान्यता से सांस्कृतिक संरक्षण को बल मिलेगा। फिर भी, कुछ अहम मुद्दे अनसुलझे रह गए हैं, जैसे जमीन स्वामित्व का संरक्षण और संवैधानिक स्वायत्तता की मांग।
बाकी चुनौतियां और भविष्य की राह
इन नियमों को एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है, लेकिन लद्दाख के लोग अभी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेता सज्जाद कारगिल ने कहा, “यह आंशिक संतुष्टि देता है। कुछ न होने से बेहतर है, लेकिन हमारी मुख्य मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं।” सबसे बड़ा मुद्दा जमीन का है। लद्दाख में बड़े पैमाने पर पर्यटन और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कारण स्थानीय लोगों को अपनी जमीन छिनने का डर है। नए नियमों में गैर-डोमिसाइल लोगों के लिए जमीन स्वामित्व पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है, जो एक बड़ी चिंता का विषय है।
इसके अलावा, सिक्स्थ शेड्यूल की मांग अभी भी बरकरार है। लद्दाख की 90% आबादी अनुसूचित जनजाति (एसटी) से है, और वे अपनी जनजातीय पहचान को संरक्षित करने के लिए संवैधानिक सुरक्षा चाहते हैं। नए नियम अनुच्छेद 240 के तहत बनाए गए हैं, जो राष्ट्रपति को नियम बनाने की शक्ति देता है। लेकिन ये नियम कार्यकारी निर्णय हैं, जिन्हें केंद्र सरकार कभी भी बदल या वापस ले सकती है। सिक्स्थ शेड्यूल के तहत मिलने वाली संवैधानिक सुरक्षा की तुलना में यह कमजोर है।
लद्दाख के एक प्रतिनिधिमंडल ने अगले महीने केंद्रीय गृह मंत्रालय से मुलाकात करने की योजना बनाई है, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह के साथ बाकी मुद्दों पर चर्चा होगी। स्थानीय लोग डोमिसाइल की शर्त को 15 साल से बढ़ाकर 30 साल करने और जमीन के लिए ठोस सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं। लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी और सीमित संसाधनों को देखते हुए, इन मांगों को अनदेखा करना मुश्किल होगा।
