मीर-रुपए लिंकिंग का ऐलान और इसका महत्व
रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने हाल ही में एक बड़ा ऐलान किया है, जिसने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में हलचल मचा दी है। भारत और रूस अब अपने-अपने कार्ड नेटवर्क और वित्तीय मैसेंजिंग सिस्टम को जोड़ने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। इसका मतलब है कि रूस का मीर कार्ड और भारत का रुपए कार्ड एक-दूसरे के देशों में स्वीकार किए जाएंगे। इसके साथ ही, दोनों देशों के बीच 85% से अधिक व्यापार अब राष्ट्रीय मुद्राओं—रुपए और रूबल—में हो रहा है। यह कदम न केवल भारत-रूस व्यापार को आसान बनाएगा, बल्कि अमेरिकी डॉलर की वैश्विक वर्चस्व को भी चुनौती देगा। यह एक नए वित्तीय युग की शुरुआत हो सकती है, जहां डॉलर की निर्भरता कम होगी और राष्ट्रीय मुद्राएं वैश्विक व्यापार का आधार बनेंगी।
मीर कार्ड और रुपए कार्ड: एक नई वित्तीय क्रांति
मीर कार्ड रूस का स्वदेशी डिजिटल पेमेंट नेटवर्क है, जिसे 2014 में अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब में विकसित किया गया था। यह वीजा और मास्टरकार्ड का विकल्प है। दूसरी ओर, भारत का रुपए कार्ड नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) का उत्पाद है, जो यूपीआई के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर चर्चा में है। मीर और रुपए कार्ड के इंटरलिंक होने से दोनों देशों के नागरिक, व्यापारी और पर्यटक सीधे अपनी मुद्राओं में लेनदेन कर सकेंगे। इससे वीजा और मास्टरकार्ड की 1-3% ट्रांजैक्शन फीस खत्म होगी, जिससे लेनदेन सस्ता और तेज होगा। साथ ही, स्विफ्ट सिस्टम की जगह दोनों देश अपने वित्तीय मैसेंजिंग सिस्टम को जोड़ रहे हैं, जो डॉलर को बायपास करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
भारत-रूस व्यापार: राष्ट्रीय मुद्राओं का बढ़ता दबदबा
रूसी राजदूत के अनुसार, भारत और रूस के बीच 85% से अधिक व्यापार अब रुपए और रूबल में हो रहा है। भारत रूस से तेल, उर्वरक और कोयला आयात करता है, जबकि रूस को भारत से दवाइयां, मशीनें और रसायन निर्यात हो रहे हैं। साल 2023-24 में भारत ने रूस से 60 बिलियन डॉलर का आयात किया, जबकि 4.5 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। दोनों देशों के सेंट्रल बैंक अब एक रेफरेंस रेट सिस्टम पर काम कर रहे हैं, जिससे बैंक बिना डॉलर के डायरेक्ट डील कर सकेंगे। यह न केवल व्यापार को सुगम बनाएगा, बल्कि भारत में रूस के निवेश को भी बढ़ावा देगा।
ब्रिक्स और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में बदलाव
यह कदम सिर्फ भारत और रूस तक सीमित नहीं है। ब्रिक्स देश (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका) मिलकर ‘ब्रिक्स पे’ नामक एक ब्लॉकचेन-आधारित पेमेंट सिस्टम पर काम कर रहे हैं। इस सिस्टम में हर देश अपनी मुद्रा में लेनदेन करेगा, जिससे डॉलर की जरूरत खत्म हो जाएगी। भारत का यूपीआई पहले ही सिंगापुर, यूएई, भूटान, नेपाल और फ्रांस में लिंक हो चुका है। अब रूस चाहता है कि यूपीआई मीर कार्ड और ब्रिक्स पे से जुड़े। यह एक साउथ-साउथ पेमेंट गठजोड़ बन सकता है, जो अमेरिका की वित्तीय मोनोपोली को चुनौती देगा।
भारत के लिए फायदे और चुनौतियां
इस गठजोड़ से भारत को कई फायदे होंगे। पहला, डॉलर पर निर्भरता कम होगी, जिससे भारत की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ेगी। दूसरा, यूपीआई और रुपए कार्ड को वैश्विक मान्यता मिलेगी। हालांकि, चुनौतियां भी हैं। भारत का रूस के साथ ट्रेड सरप्लस है, जिसके लिए अधिक निर्यात की जरूरत होगी। भारतीय और रूसी बैंकों को एक मजबूत चैनल बनाना होगा। अमेरिका प्रतिबंधों का दबाव बना सकता है, लेकिन भारत पहले भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों के आधार पर फैसले लेता रहा है।
अमेरिका की बेचैनी और वैश्विक वित्तीय सत्ता में उलटफेर
डेनिस अलीपोव का बयान सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक संकेत भी देता है। यह डॉलर-केंद्रित वैश्विक व्यवस्था को चुनौती है। अगर भारत और रूस इस दिशा में सफल होते हैं, तो ब्रिक्स देशों के साथ-साथ खाड़ी और अफ्रीकी देश भी इस मॉडल को अपना सकते हैं। इससे डॉलर का आर्थिक और राजनीतिक हथियार कमजोर होगा। अमेरिका की चिंता स्वाभाविक है, क्योंकि रुपए, रूबल, युआन और रियाल जैसी मुद्राएं वैश्विक व्यापार में नई भूमिका निभा सकती हैं।
एक नए आर्थिक युग की शुरुआत
भारत और रूस का यह वित्तीय गठजोड़ न केवल आपसी व्यापार को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में एक नया अध्याय लिखेगा। यह ‘डॉलर हटाओ’ आंदोलन की शुरुआत हो सकता है, जो भारत की टेक्नोलॉजी डिप्लोमेसी और रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह गठजोड़ कैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार देता है।