भारत रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नया मानक स्थापित करने जा रहा है। हाल ही में डीआरडीओ (DRDO) द्वारा जारी जानकारी के अनुसार, देश में वर्तमान में 12 विभिन्न हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणालियों पर सक्रिय रूप से काम चल रहा है। यह विकास भारत को वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख रक्षा शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
हाइपरसोनिक तकनीक क्या है
हाइपरसोनिक मिसाइलें वे होती हैं जो ध्वनि की गति से पांच गुना (5 मैक) या अधिक की गति से यात्रा करती हैं। ये मिसाइलें दो प्रमुख श्रेणियों में आती हैं:
- हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV): जो रॉकेट द्वारा लॉन्च किए जाने के बाद वायुमंडल में वापस ग्लाइड करते हुए लक्ष्य तक पहुंचती हैं।
- हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल (HCM): जो वायुमंडल के भीतर ही अपनी उच्च गति बनाए रखती हैं।
वैश्विक परिदृश्य
वर्तमान में केवल रूस और चीन के पास ही परिचालनात्मक हाइपरसोनिक हथियार प्रणालियाँ हैं:
- रूस: ज़िरकॉन मिसाइल (9 मैक गति)
- चीन: DF-ZF मिसाइल (5-10 मैक गति)
अमेरिका अभी भी इस तकनीक को विकसित करने के प्रयासों में जुटा हुआ है, जबकि भारत तेजी से इस दौड़ में आगे निकलता जा रहा है।
भारत की प्रमुख हाइपरसोनिक परियोजनाएँ
डीआरडीओ द्वारा विकसित की जा रही 12 प्रमुख प्रणालियों में शामिल हैं:
- ब्रह्मोस-II: 8 मैक गति वाली यह मिसाइल भूमि, समुद्र और पनडुब्बी से लॉन्च की जा सकेगी।
- लॉन्ग रेंज एंटी-शिप मिसाइल: 1,500 किमी तक की मारक क्षमता वाली यह प्रणाली भारतीय नौसेना को नई शक्ति प्रदान करेगी।
- एयर लॉन्च हाइपरसोनिक मिसाइल: सुखोई-30 और भविष्य की AMCA लड़ाकू विमानों से लॉन्च की जा सकेगी।
- हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर: दुश्मन की हाइपरसोनिक मिसाइलों को मार गिराने की क्षमता।
- प्रोजेक्ट विष्णु: 12 मैक की अभूतपूर्व गति वाली प्रायोगिक मिसाइल।
तकनीकी चुनौतियाँ और नवाचार
हाइपरसोनिक गति पर काम करने वाले स्क्रैमजेट (Scramjet) इंजन का विकास सबसे बड़ी चुनौती रही है। भारत ने 2020 में HSTDV (हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल) के सफल परीक्षण से यह साबित कर दिया कि उसके पास यह महत्वपूर्ण तकनीक मौजूद है।
रणनीतिक महत्व
- मौजूदा मिसाइल रक्षा प्रणालियों को धता बताने की क्षमता
- केवल 5-10 मिनट में 1,000 किमी दूर के लक्ष्य को भेद सकती हैं
- परमाणु वारहेड वितरण का सबसे विश्वसनीय माध्यम
- क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में निर्णायक बदलाव
DRDO प्रमुख के अनुसार, भारत अब किसी भी नई मिसाइल प्रणाली को मात्र 2 वर्षों में विकसित करने की क्षमता रखता है। यदि ये सभी 12 परियोजनाएँ निर्धारित समय पर पूरी होती हैं, तो 2028 तक भारत के पास दुनिया का सबसे विविधतापूर्ण हाइपरसोनिक शस्त्रागार होगा।
हाइपरसोनिक हथियार 21वीं सदी के युद्धक्षेत्र को परिभाषित करने वाले हैं। भारत का यह प्रयास न केवल उसे एक आत्मनिर्भर रक्षा शक्ति बनाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक तकनीकी नेता के रूप में भी स्थापित करेगा। यह विकास देश की सुरक्षा को नई दिशा देगा और भविष्य के युद्धों में निर्णायक लाभ प्रदान करेगा।