भारत ने ऊर्जा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए 2030 के लक्ष्य से पहले ही अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 50% से अधिक हिस्सा गैर-जीवाश्म स्रोतों (नॉन-फॉसिल) से प्राप्त कर लिया है। यह उपलब्धि भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो रही है।
यह उपलब्धि भारत की क्लाइमेट चेंज और स्वच्छ ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। हालांकि, क्षमता (कैपेसिटी) और वास्तविक बिजली उत्पादन (जनरेशन) में अंतर है, जिसे इस लेख में समझाया जाएगा। यह लेख भारत की इस उपलब्धि, इसके पीछे की रणनीतियों, चुनौतियों, और भविष्य की योजनाओं का विश्लेषण करता है।
पेरिस समझौते में भारत की प्रतिबद्धताएं
2015 के पेरिस समझौते के तहत, भारत ने निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किए थे:
- उत्सर्जन तीव्रता में कमी: 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता (Emission Intensity) को 33-35% तक कम करना। 2022 तक यह 24% तक कम हो चुकी थी, और 2025 तक 30% की कमी का अनुमान है।
- कार्बन सिंक: 2.5-3 बिलियन टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक (जैसे वृक्षारोपण) बनाना। 2023 तक भारत ने 1.97 बिलियन टन कार्बन सिंक बनाया।
- नॉन-फॉसिल फ्यूल क्षमता: 2030 तक कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 40% नॉन-फॉसिल फ्यूल से प्राप्त करना। 2022 में अपडेटेड नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन (NDC) में इसे बढ़ाकर 50% कर दिया गया।
2025 की उपलब्धि: 50% नॉन-फॉसिल फ्यूल क्षमता
30 जून 2025 तक भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 484 गीगावाट (GW) थी, जिसमें से 242 GW (50%) नॉन-फॉसिल फ्यूल स्रोतों से थी। इसका विवरण निम्नलिखित है:
- रिन्यूएबल एनर्जी: 184 GW (38% कुल क्षमता)
- सौर ऊर्जा: 102 GW
- पवन ऊर्जा: 52 GW
- बायोमास और अन्य: 30 GW
- जलविद्युत (हाइड्रो): 49 GW (10% कुल क्षमता)
- नाभिकीय (न्यूक्लियर): 8.8 GW (1.8% कुल क्षमता)
फॉसिल फ्यूल की स्थिति
- कोयला: 200 GW+ (कुल क्षमता का ~41%)
- गैस और डीजल: शेष हिस्सा (~11%)
हालांकि, वास्तविक बिजली उत्पादन में नॉन-फॉसिल फ्यूल का योगदान केवल 25% है, जबकि 72% बिजली कोयले से उत्पन्न होती है। इसका कारण रिन्यूएबल ऊर्जा की कम उपयोगिता दर (20-25%) और इसकी रुक-रुक कर उपलब्धता (इंटरमिटेंसी) है।
उपलब्धि के पीछे की रणनीतियां
भारत ने इस माइलस्टोन को हासिल करने के लिए कई नीतिगत और बुनियादी ढांचागत कदम उठाए:
- आक्रामक रिन्यूएबल डिप्लॉयमेंट:
- 2024 में 28 GW रिन्यूएबल क्षमता जोड़ी गई, जो अब तक का सबसे अधिक वार्षिक जोड़ है।
- 2025 के पहले छह महीनों में 16 GW (सौर: 10 GW, पवन: 6 GW) जोड़ा गया, जिसमें जून 2025 में 7.3 GW (सौर: 5.4 GW, पवन: 1.4 GW) शामिल है।
- नीतिगत पहल:
- सोलर पार्क स्कीम: 50 सौर पार्कों में 38 GW क्षमता स्थापित।
- पीएम कुसुम योजना: किसानों के लिए सौर पंप और सौर संयंत्र स्थापना को बढ़ावा।
- पीएम सूर्य घर योजना: 100 मिलियन घरों में रूफटॉप सौर पैनल स्थापना का लक्ष्य।
- ग्रीन ओपन एक्सेस नियम: 100 kW से अधिक बिजली की जरूरत वाली कंपनियों को सीधे ग्रीन पावर खरीदने की अनुमति।
- प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम: सौर मॉड्यूल के स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा।
- राज्य और निजी क्षेत्र की भागीदारी:
- गुजरात, राजस्थान, और तमिलनाडु ने रिन्यूएबल ऊर्जा में अग्रणी भूमिका निभाई।
- निजी कंपनियां जैसे अडानी, टाटा पावर, और रिन्यू ग्रीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया।
- वैश्विक निवेश: भारत की ग्रीन इकॉनॉमी में 2024 में $12 बिलियन का विदेशी निवेश आया।
चुनौतियां
- क्षमता बनाम वास्तविक उत्पादन:
- नॉन-फॉसिल फ्यूल की क्षमता 50% है, लेकिन वास्तविक उत्पादन केवल 25%।
- सौर और पवन ऊर्जा की उपयोगिता दर (Capacity Utilization Factor) केवल 20-25% है, क्योंकि ये मौसम और समय पर निर्भर हैं।
- कोयले पर निर्भरता: कोयला अभी भी 72% बिजली उत्पादन के लिए जिम्मेदार है। भारत 2032 तक 80 GW नई कोयला क्षमता जोड़ने की योजना बना रहा है, क्योंकि बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है (2024 में 8% वृद्धि)।
- ऊर्जा भंडारण: सौर और पवन ऊर्जा के लिए बैटरी स्टोरेज की कमी एक बड़ी चुनौती है। भारत में बैटरी स्टोरेज क्षमता केवल 2 GW है, जबकि 2030 तक 50 GW की जरूरत है।
- ग्रिड एकीकरण: रिन्यूएबल ऊर्जा को मुख्य ग्रिड में एकीकृत करने में स्थिरता और तकनीकी चुनौतियां।
- डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति: वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का ₹5 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज, जो रिन्यूएबल ऊर्जा को अपनाने में बाधा है।
वैश्विक तुलना
- चीन: 50% नॉन-फॉसिल फ्यूल क्षमता, लेकिन 32% वास्तविक उत्पादन।
- यूएस: 45% क्षमता, 22% उत्पादन।
- यूरोपीय संघ: 60% क्षमता, 40% उत्पादन।
भारत की क्षमता वैश्विक स्तर पर तुलनीय है, लेकिन वास्तविक उत्पादन में सुधार की जरूरत है।
भविष्य की योजनाएं
भारत ने 2030 और 2070 के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं:
- 2030 लक्ष्य:
- 500 GW नॉन-फॉसिल फ्यूल क्षमता: वर्तमान 242 GW को दोगुना करना।
- 50% वास्तविक बिजली उत्पादन: नॉन-फॉसिल स्रोतों से, जिसके लिए बैटरी स्टोरेज और ग्रिड स्थिरता में निवेश जरूरी है।
- 2070 लक्ष्य: नेट-जीरो उत्सर्जन, जिसमें कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे नवाचार शामिल होंगे।
- प्रमुख रणनीतियां:
- ग्रीन हाइड्रोजन: रिन्यूएबल ऊर्जा से इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा हाइड्रोजन उत्पादन। 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य।
- बैटरी स्टोरेज: 50 GW स्टोरेज क्षमता और पंप्ड हाइड्रो प्रोजेक्ट्स।
- स्मार्ट ग्रिड्स: ग्रिड स्थिरता और रिन्यूएबल ऊर्जा एकीकरण के लिए निवेश।
- रूफटॉप सौर: 100 मिलियन घरों में सौर पैनल स्थापना।
- डिस्कॉम सुधार: वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए RDSS योजना के तहत ₹3 लाख करोड़ का निवेश।
वैश्विक महत्व
- COP 30 (2025, ब्राजील): भारत अपनी इस उपलब्धि को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करेगा, जिससे उसकी क्लाइमेट लीडरशिप मजबूत होगी।
- ऊर्जा सुरक्षा: नॉन-फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता बढ़ने से कोयला और तेल आयात (2024 में $200 बिलियन) में कमी आएगी, जो भू-राजनीतिक जोखिमों (जैसे रूस-यूक्रेन, इजरायल-ईरान) से सुरक्षा देगा।
- आर्थिक लाभ: रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र में 2024 में 15 लाख नौकरियां सृजित हुईं, और 2030 तक 50 लाख नौकरियां संभावित हैं।
भारत ने 2030 से पांच साल पहले 50% नॉन-फॉसिल फ्यूल क्षमता का लक्ष्य हासिल कर लिया, जो उसकी स्वच्छ ऊर्जा और क्लाइमेट चेंज के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, वास्तविक बिजली उत्पादन में केवल 25% नॉन-फॉसिल स्रोतों से है, जो बैटरी स्टोरेज, ग्रिड एकीकरण, और डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति जैसे चुनौतियों को उजागर करता है। ग्रीन हाइड्रोजन, स्मार्ट ग्रिड्स, और रूफटॉप सौर जैसे नवाचारों के साथ, भारत 2030 तक 500 GW क्षमता और 50% वास्तविक उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर सकता है। यह न केवल ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि 2070 के नेट-जीरो लक्ष्य की ओर एक मजबूत कदम होगा।