केंद्र सरकार ने IDBI बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐतिहासिक फैसला किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सितंबर 2025 तक इसके लिए बोलियां आमंत्रित की जाएंगी। इस कदम से बैंक के ग्राहकों और निवेशकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं, जैसे कि यह निर्णय क्यों लिया जा रहा है और इसका ग्राहकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
सरकार और LIC मिलकर IDBI बैंक में अपनी 60.72% हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में हैं। वर्तमान में, सरकार और LIC के पास बैंक की लगभग 95% हिस्सेदारी है, जिसका अर्थ है कि बैंक पर इन दोनों का पूर्ण नियंत्रण है। अब सरकार इस हिस्सेदारी को निजी निवेशकों को बेचकर बैंक का स्वामित्व बदलना चाहती है। इस प्रक्रिया के लिए सितंबर 2025 तक वित्तीय बोलियां आमंत्रित की जाएंगी, जिसमें विभिन्न कंपनियां और निवेशक अपनी बोली लगा सकेंगे।
इस खबर के बाद IDBI बैंक के शेयरों में तेजी देखी गई। सोमवार को बैंक के शेयरों में 4% की बढ़त दर्ज की गई, जिससे शेयर की कीमत ₹15 तक पहुंच गई। यह उछाल निवेशकों के बीच बढ़ते भरोसे को दर्शाता है और बाजार में इस निर्णय को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी जा रही है। सरकार का अनुमान है कि इस डील से ₹00 से ₹00 करोड़ का राजस्व प्राप्त होगा, जो वित्त वर्ष 2026 में सरकारी कोष को मजबूत करेगा।
IDBI बैंक का निजीकरण कोई नई योजना नहीं है। पिछले तीन वर्षों से इस प्रक्रिया पर काम चल रहा था, लेकिन कई बार इसमें देरी हुई। अब सूत्रों के अनुसार, सरकार शेयर खरीद समझौते को अंतिम रूप देने के करीब है। इसके बाद एक मंत्रिस्तरीय पैनल इस प्रस्ताव को मंजूरी देगा, जिससे निजीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
बैंक के ग्राहकों के लिए चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि निजीकरण के बाद भी उनके खाते और बैंकिंग सेवाएं पहले की तरह जारी रहेंगी। हालांकि, नए मालिकाना हक के तहत बैंक की नीतियों और सेवाओं में कुछ बदलाव हो सकते हैं। सरकार का यह कदम बैंकिंग क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाने और बैंक की दक्षता सुधारने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है।
इस निर्णय से न केवल सरकार को राजस्व प्राप्त होगा, बल्कि बैंक को भी नए निवेश और प्रबंधन कौशल से लाभ मिलेगा। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यह निजीकरण देश के बैंकिंग उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।