भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। DRDO के वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से विकसित 30 किलोवाट क्षमता वाले लेजर आधारित ड्रोन डिटेक्शन एवं इंटरसेप्शन सिस्टम (IDD&IS Mk-IIA) का सफल परीक्षण पूरा कर लिया है। इस उन्नत हथियार प्रणाली को हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स साइंसेज (CHESS) और भारतीय उद्योगों के सहयोग से तैयार किया गया है।
इस सिस्टम को अब निजी कंपनियों को बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए हस्तांतरित किया जाएगा। यह तकनीक भारत को ड्रोन हमलों से निपटने में सक्षम बनाएगी और सीमा सुरक्षा को मजबूती प्रदान करेगी। DRDO अब इससे भी अधिक शक्तिशाली 50-100 किलोवाट और 300 किलोवाट क्षमता वाले ‘सूर्या’ लेजर वेपन सिस्टम पर कार्य कर रहा है, जो भविष्य में भारत की मिसाइल रोधी क्षमताओं को बढ़ाएगा।
भारत की रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एक बार फिर अपनी तकनीकी क्षमता का लोहा मनवाया है।। यह लेजर वेपन पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और अब इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी चल रही है। यह उपलब्धि भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करती है, जिनके पास उच्च-शक्ति वाले लेजर हथियार हैं।
लेजर वेपन की तकनीकी विशेषताएं
डीआरडीओ द्वारा विकसित यह 30 किलोवाट का लेजर वेपन, जिसका कोडनेम ‘सहस्त्र शक्ति’ है, पांच किलोवाट की छह लेजर बीम्स को मिलाकर एक फोकस्ड 30 किलोवाट की शक्तिशाली बीम जनरेट करता है। यह सिस्टम 3.5 से 5 किलोमीटर की दूरी पर ड्रोन, स्वार्म ड्रोन, कम ऊंचाई वाले हवाई खतरों और निगरानी सेंसर को सेकंडों में नष्ट करने में सक्षम है। इसकी खासियत यह है कि यह 360-डिग्री ट्रैकिंग और रडार-सेंसर सुइट से लैस है, जो इसे स्वचालित रूप से लक्ष्य को खोजने और नष्ट करने की क्षमता प्रदान करता है। इसे ट्रक पर तैनात किया जा सकता है, जिससे यह तेजी से विभिन्न स्थानों पर ले जाया जा सकता है।
डीआरडीओ की लंबी यात्रा
डीआरडीओ पिछले एक दशक से इस लेजर वेपन को विकसित करने में जुटा हुआ था। इसकी शुरुआत 2 किलोवाट के मार्क-I सिस्टम से हुई, जिसने अप्रैल 2025 में नियंत्रण रेखा (LoC) पर एक चीनी ड्रोन को नष्ट करके अपनी क्षमता साबित की थी। इसके बाद मार्क-II में 12 किलोवाट की बीम तैयार की गई, और अब मार्क-IIA के साथ 30 किलोवाट की शक्ति हासिल की गई है। यह प्रोजेक्ट हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेस (CHESS) ने भारतीय उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से पूरा किया है। इस लेजर वेपन का विकास भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति का एक शानदार उदाहरण है।
वैश्विक संदर्भ में भारत की स्थिति
30 किलोवाट की तीव्रता और 5 किलोमीटर की रेंज वाला यह लेजर वेपन भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा करता है, जिनके पास इस तरह की उन्नत तकनीक है। अभी तक केवल अमेरिका, यूके, रूस और चीन जैसे देशों के पास ही ऐसी क्षमता थी। डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने कहा, “जहां तक मुझे पता है, अमेरिका, रूस और चीन ने इस क्षमता का प्रदर्शन किया है। इजरायल भी इस दिशा में काम कर रहा है। हम इस प्रणाली का प्रदर्शन करने वाले दुनिया के चौथे या पांचवें देश हैं।” यह उपलब्धि भारत को वैश्विक रक्षा तकनीक में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है।
निजी क्षेत्र को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
डीआरडीओ अब इस तकनीक को निजी क्षेत्र की कंपनियों को हस्तांतरित करने की योजना बना रहा है ताकि इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो सके। यह कदम न केवल उत्पादन क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि लागत दक्षता और नवाचार को भी प्रोत्साहित करेगा। डीआरडीओ का लक्ष्य है कि इस सिस्टम का उपयोग भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना द्वारा किया जाए, जिससे रक्षा बलों की क्षमता में और वृद्धि होगी।
भविष्य की योजनाएं: सूर्या लेजर सिस्टम
डीआरडीओ की महत्वाकांक्षा यहीं तक सीमित नहीं है। संगठन अब 50-100 किलोवाट और 300 किलोवाट की ‘सूर्या’ लेजर प्रणाली पर काम कर रहा है, जिसकी मारक क्षमता 20 किलोमीटर होगी। यह सिस्टम हाइपरसोनिक मिसाइलों और उच्च गति वाले ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम होगा, जो भारत को आधुनिक युद्ध में और अधिक शक्तिशाली बनाएगा।
भारत के लिए फायदे
यह लेजर वेपन भारत की रक्षा क्षमताओं को कई तरह से मजबूत करता है:
- लागत प्रभावी: एक इंटरसेप्टिंग शॉट की लागत केवल ₹300 है, जो इसे पारंपरिक हथियारों और मिसाइलों की तुलना में बेहद किफायती बनाता है।
- तेज और सटीक: यह सिस्टम प्रकाश की गति से काम करता है और सेकंडों में लक्ष्य को नष्ट कर सकता है।
- स्वार्म ड्रोन रोधी: यह एक साथ कई ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम है, जो आधुनिक युद्ध में एक बड़ी चुनौती है।
- इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में उपयोगी: यह दुश्मन के संचार और सैटेलाइट सिग्नल को जाम करने में भी प्रभावी है।
ऑपरेशन सिंदूर में महत्व
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान द्वारा चीनी और तुर्की तकनीक पर आधारित ड्रोन और मानवरहित हवाई वाहनों का व्यापक उपयोग देखा गया था। इस लेजर वेपन का विकास इन खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने की भारत की क्षमता को दर्शाता है। यह न केवल ड्रोन को नष्ट कर सकता है, बल्कि दुश्मन के निगरानी सेंसर और एंटेना को भी निष्क्रिय कर सकता है, जिससे यह असममित युद्ध में रणनीतिक बढ़त प्रदान करता है।
डीआरडीओ का 30 किलोवाट का एंटी-ड्रोन लेजर वेपन भारत की रक्षा तकनीक में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल भारत को अमेरिका, यूके, रूस और चीन जैसे देशों की श्रेणी में ला खड़ा करता है, बल्कि भविष्य के युद्धों में भी भारत को एक मजबूत स्थिति प्रदान करता है। निजी क्षेत्र को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से इस हथियार का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव होगा, जो भारत की आत्मनिर्भरता और रक्षा तैयारियों को और मजबूत करेगा। यह उपलब्धि न केवल तकनीकी, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत के लिए गर्व का विषय है।