सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने में मनमानी और भेदभाव पर कड़ा रुख दिखाया है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब पुरुष और महिला अफसर एक जैसी ट्रेनिंग और पोस्टिंग करते हैं, तो उनके मूल्यांकन के लिए अलग-अलग पैमाने क्यों? यह मामला 13 शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) महिला अफसरों से जुड़ा है, जिन्हें स्थायी कमीशन से वंचित किया गया। इनमें लेफ्टिनेंट कर्नल वनीता पाधी, चंदनी मिश्रा, गीता शर्मा और अन्य शामिल हैं, जिन्होंने कठिन और संवेदनशील इलाकों में ड्यूटी दी, फिर भी उन्हें हक नहीं मिला।
क्या है विवाद
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सेना से तीखा सवाल किया, “जब ट्रेनिंग और पोस्टिंग एक जैसी है, तो महिलाओं के लिए अलग मूल्यांकन प्रणाली क्यों? क्या ये रूढ़िवादी सोच और पुरानी धारणाओं का नतीजा है?” कोर्ट ने साफ कहा कि यह भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (लैंगिक भेदभाव पर रोक) का उल्लंघन करता है।
नियुक्ति मानदंड में भेदभाव
सेना में ‘नियुक्ति मानदंड’ का मतलब है ऐसी जिम्मेदारी, जहां अफसर को कठिन, संवेदनशील या दुश्मन सीमा से जुड़े इलाकों में कमान संभालनी पड़ती है। पुरुष अफसरों की ऐसी पोस्टिंग उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में ‘मानदंड रिपोर्ट’ के तौर पर दर्ज होती है, लेकिन महिला अफसरों की ऐसी ही ड्यूटी को ‘गैर-मानदंड’ माना गया। इससे उनकी ACR कमजोर हुई और स्थायी कमीशन की राह में रुकावट आई।
महिला अफसरों की दलील
वरिष्ठ वकील मेनेका गुरुस्वामी, जो इन 13 महिला अफसरों का पक्ष रख रही हैं, ने बताया कि 2020 से पहले महिलाओं को स्थायी कमीशन का मौका ही नहीं दिया गया। उनकी ACR 2019 में फ्रीज कर दी गई, जिससे उनका रिकॉर्ड कमजोर हो गया। फिर भी, इन अफसरों ने कठिन परिस्थितियों में शानदार काम किया। मिसाल के तौर पर:
- लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा ने ‘ऑपरेशन गलवां’ में लद्दाख में कम्युनिकेशन की कमान संभाली।
- लेफ्टिनेंट कर्नल स्वाति रावत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और जम्मू-कश्मीर के आतंक प्रभावित इलाकों में ड्यूटी दी।
- एक महिला अफसर ने बालाकोट एयर स्ट्राइक में विमान वापस लाने में मदद की, लेकिन उन्हें एक हफ्ते बाद ही सेवा छोड़ने को कहा गया।
गुरुस्वामी ने कहा कि महिलाओं को पुरुषों की तरह लगातार मूल्यांकन का मौका नहीं दिया गया, जिससे उनके करियर पर असर पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला
फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि महिला अफसरों को सिर्फ स्टाफ पोस्ट तक सीमित रखना ‘असंगत और अवैध’ है। कोर्ट ने सेना को महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। इसके बावजूद, भेदभाव की शिकायतें सामने आईं। बुधवार को सुनवाई पूरी नहीं हुई और अब गुरुवार को जारी रहेगी। इसके बाद नौसेना और वायुसेना की महिला अफसरों की याचिकाओं पर भी सुनवाई होगी, जिन्हें भी स्थायी कमीशन नहीं मिला।