DELHI : आयकर विभाग ने राजनीतिक दलों को चंदा देने पर करदाताओं को नोटिस जारी किया है

DELHI : आयकर विभाग ने राजनीतिक दलों को चंदा देने पर करदाताओं को नोटिस जारी किया है

आयकर विभाग ने उन करदाताओं को नोटिस भेजे हैं जिन्होंने ऐसे राजनीतिक दलों को दान दिया, जो पंजीकृत तो हैं लेकिन चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हैं। ये नोटिस व्यक्तिगत और कॉरपोरेट दाताओं को वित्त वर्ष 2011 और 2012 के दौरान किए गए दानों के संबंध में भेजे गए हैं, ताकि यह जांचा जा सके कि क्या इन भुगतानों का उपयोग कर चोरी और धन शोधन के लिए किया गया था, जैसा कि सूत्रों ने बताया।

भारतीय चुनावों और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिसों के बारे में बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारी दी है। यहां कुछ मुख्य बिंदु हैं:

चुनावी रिजल्ट और इनकम टैक्स नोटिसेज: 

चुनावी रिजल्ट के बाद भारत में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने तकरीबन 1700 नोटिसेज जारी किए हैं। 

ये नोटिसेज व्यापारियों के हिस्से के हैं, जिससे यह सुझाव देता है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट चुनाव के ऐलान के बाद सक्रिय हो गया है।

 नोटिसेज के बंडल में व्यापारियों के साथ जुड़े नेताओं के खिलाफ भी नोटिसेज शामिल हैं। 

सीबीआई और ईडी: सीबीआई और ईडी के बाद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिसेज के बारे में बहुत सवाल उठे हैं।

 यह चुनाव से पहले और चुनाव के बाद की स्थितियों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

 कांग्रेस और इनकम टैक्स नोटिसेज: कांग्रेस को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से अधिकतम 3,500 करोड़ रुपये के नोटिस मिले हैं। 

यह चुनाव से पहले और चुनाव के बाद की स्थितियों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

अब चुनावी नतीजे सामने आने में केवल 20 दिन शेष हैं, हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि इन दिनों में क्या हो सकता है। विशेषकर तब जब चुनावी परिणाम सत्ता के विरुद्ध जाते दिख रहे हैं और चरणबद्ध मतदान यह संकेत दे रहा है कि मोदी सरकार दस वर्षों के बाद चुनाव हार सकती है। इसलिए, आइए कल्पना करें कि अगले 20 दिनों में क्या हो सकता है। चुनाव की घोषणा के बाद से आज तक, इनकम टैक्स विभाग ने लगभग 1700 नोटिस जारी किए हैं, जो केवल व्यापारियों को भेजे गए हैं। यह दर्शाता है कि चुनाव की घोषणा के बाद इनकम टैक्स विभाग कितना सक्रिय हो गया है, और उसकी सक्रियता का आलम यह है कि हर वह व्यापारी जो किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ है या गैर-बीजेपी शासित राज्य में किसी नेता के साथ संबंध रखता है, उसे नोटिस मिल चुका है।

इतनी बड़ी संख्या में नोटिस भेजे जाने का क्या अर्थ हो सकता है, विशेषकर जब पिछले 10 वर्षों में इस देश में सरकारी एजेंसियों के बारे में इतने प्रश्न उठे हैं कि पहले केवल सीबीआई के बारे में प्रश्न उठते थे और यह कहा जाता था कि सीबीआई सरकार का तोता है। लेकिन उसके बाद, मोदी सरकार के दौरान ईडी का उदय हुआ और फिर यह चर्चा बढ़ती गई कि सरकारी एजेंसियां विपक्ष पर किस प्रकार नियंत्रण रख सकती हैं। इसमें इनकम टैक्स विभाग की भी भूमिका बढ़ी और विपक्ष ने संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के पास जो भी ज्ञापन भेजे, वे सभी चुनाव से पहले कितनी बार और किस रूप में कहे गए, इसका जिक्र आज न करें। चुनाव के बाद की स्थितियों का जिक्र करें, और इस दौर में जब चुनाव शुरू हुए, तो ध्यान दें कि इंडिया गठबंधन और विशेषकर कांग्रेस, और उसमें भी विशेषकर राहुल गांधी या कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने बार-बार किन बातों का जिक्र किया। उन्होंने खुले तौर पर कहा कि सत्ता में आने पर हर फाइल खुलेगी, और यह फाइलें केवल इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी नहीं थीं। राहुल गांधी ने खुले तौर पर कहा कि यह 'कच्चा चिट्ठा' सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से सामने आ गया है, चाहे वह बैंकों से कर्ज लेकर भागने वाले हों, या कौड़ियों के मोल देश के सार्वजनिक उपक्रमों को कॉर्पोरेट को बेचने की स्थितियां हों, या अलग-अलग मंत्रालयों का मोनेटाइजेशन और निजीकरण के नाम पर जो भी हुआ हो, या डिसइन्वेस्टमेंट की बात हो। और जो कुछ भी इस देश में कॉर्पोरेट के हवाले किया गया है और जिस तरीके से पूरी अर्थव्यवस्था के भीतर चंदा और धंधे को जोड़ा गया है, उन सभी फाइलों को खोलने की जरूरत है। और यही कारण है कि चुनाव जब गति पकड़ चुके हैं और आज की तारीख में 380 सीटों पर वोटिंग पूरी हो चुकी है, तो इस देश ने जनादेश के नजदीक पहुंचना शुरू कर दिया है। ऐसी परिस्थिति में, क्या सरकार को इस बात का एहसास हो गया है कि उसकी कुर्सी खिसक रही है? और क्या इंडिया गठबंधन या कांग्रेस को भी यह एहसास हो चुका है, जहां वे बार-बार कहते हैं कि हर जांच होगी, हर फाइल खुलेगी? क्योंकि भारत में सामान्यतः इससे पहले ऐसा नहीं होता था।

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